इस साल पूंजी बाजार में ग्रामीण बैंक प्रवेश कर सकता है और इसके लिए भारत सरकार ने बुधवार को निर्देश जारी कर दिया है। ग्रामीण बैंक कर्मी इसे बैंक के निजीकरण के प्रयास के तौर पर देख रहे हैं जिसका विरोध शुरू कर दिया है और काला बिल्ला धारण कर शुक्रवार से काम कर रहे हैं। इसक्रम में ज्वाइन्ट फोरम ऑफ ग्रामीण बैंक यूनियन्स के संयोजक डीएन त्रिवेदी ने कहा कि सरका, अगर ग्रामीण बैंक का आईपीओ जारी करने का निर्देश वापस नही लेती है तो शीत कालीन सत्र में संसद का घेराव किया जायगा। ज्ञातव्य है कि ग्रामीण बैंक की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को सस्ते व्याज पर ऋण और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से आरआरबी अधिनियम, 1975 के तहत किया गया था। पांच दशक के दौरान ग्रामीण बैंक ने आम आदमी के बैंक की छबि प्राप्त कर ली है। इसकी कुल शाखाऐ देशभर में 21892 है जिसका 92 फीसद ग्रामीण और अर्द्ध शहरी क्षेत्र में कार्यरत है। ग्रामीण बैंक द्वारा अपने कुल ऋण का 90 फीसद प्राथमिकता वाले क्षेत्र अर्थात लघु व सीमान्त किसान, छोटे कारोबारी व दस्तकारों को सस्ते ब्याज दर पर दिए हैं। परन्तु अब ज्यादा पूंजी बाजार से जुटाने के उद्देश्य से ग्रामीण बैंक कानून 1976 को संशोधित किया गया है जिसके तहत ऐसे बैंकों को केंद्र, राज्यों और प्रायोजक बैंकों के अलावा अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई थी। वर्तमान में, केंद्र की आरआरबी में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि 35 प्रतिशत और 15 प्रतिशत क्रमशः संबंधित प्रायोजक बैंकों और राज्य सरकारों के पास हैं। ग्रामीण बैंक का आईपीओ जारी करने के सरकारी प्रयास को बैंक कर्मी बैंक के निजीकरण की प्रारंभिक प्रक्रिया के रूप में देख रहे हैं जिसका कुप्रभाव उनके सेवाशर्त तथा गरीब ग्रामीण जनता के सस्ते दर पर ऋण मुहैया कराने पर भी पड़ सकता है। क्योंकि निजीकरण के बाद बैंक का उद्देश्य वेलफेयर के बजाए अधिक से अधिक मुनाफा अर्जित करना हो जाएगा।

गजेन्द्र केशरवानी,महासचिव,ऑफिसर्स एसोसिएशन ऑफ छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक

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